भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शनिवार, 30 अगस्त 2014
इंसानियत
अस्तित्व....वजूद....
टूट रहा धीरे धीरे...मिट रहा मानव जाती पर से भरोसा। इंसानियत का गला घोंटा जा रहा। खतरे के निशान पार कर रही बुराई। हावी है महत्वाकांछा...हावी है खुद की व्यक्तिगत लोभी भावना। सरेयाम चौराहे पर नीलाम की जा रही बरसों की सजाई सादगी।
अपना...पराया....दोस्त...दुश्मन....
सब एक जैसे दोस्ती करूँ तो दुश्मनी को जन्म दूँ....दुश्मनी करूँ तो इंसानियत का खून होगा....अपना कहूँ तो हक़ कितना दूँ....पराया कहूँ तो दलील क्या दूँ...!!
विश्वास....डगमगाया है.....
उम्मीद है दुबारा पुराने तरीके से लौट सकूँ...बार बार के टूटने पर गांठ पर जाती...और वो गांठ खुलने लगती है समय समय पर...!!!
रिश्तों में गांठ की जगह ही नहीं पर लोगों का क्या वो अपनी बातें कह कर निकाल जाते पर मेरे दिमाग पर गहरा असर करता ये सब...!!!
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
बरसात में भीगती शाम में अकेले तनुज अपनी दूकान में बैठा रास्ता निहार रहा था सुबह से एक भी कस्टमर दुकान के अन्दर दाखिल नहीं हुआ। तनुज से ब...
-
मैं डूब डूब के चलता हूँ, मैं गीत वही दोहराता हूँ। जो दौड़ कभी था शुरू किया, उस पर दम भी भरता हूँ। हर रोज ही अपनी काया को, तेरे...
-
(सीन 1) अचानक एक कार रुकी.... बड़ी ज़ोर सी आवाज़ आई....रोहन.....बीप बीप बालकनी से रोहन ने झांक के देखा एक अजब सी रंगत थी उसके चेहरे ...
मन को मजबूत बनना होगा...
जवाब देंहटाएं