इंसानी ईमान ऐसे टूटने लगा है।
चंद तजुर्बों में तौले जाते रिश्ते,
साथ सबका ऐसे छूटने लगा है।
मनाने कहाँ आते लोग आजकल,
सच्चा साथी ऐसे रूठने लगा है।
विश्वास कैसे करे आज किसी पर,
अपना करीबी ऐसे लूटने लगा है।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०६-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल की गहराई से निकले जज्बात
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