बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

अच्छाई


अच्छाई का दम घुटने लगा है,
इंसानी ईमान ऐसे टूटने लगा है।

चंद तजुर्बों में तौले जाते रिश्ते,
साथ सबका ऐसे छूटने लगा है।

मनाने कहाँ आते लोग आजकल,
सच्चा साथी ऐसे रूठने लगा है।

विश्वास कैसे करे आज किसी पर,
अपना करीबी ऐसे लूटने लगा है।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०६-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)

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