इंसान देख बेवजह ही भटक जाते हैं।
सींपें ढूंढती रहती अपने नाम के गौहर,
मछली देख मछुवारे भी भटक जाते हैं।
आसमानी मोती खुद टूट कर गिरते,
समुंदर देख सितारे भी भटक जाते हैं।
ज़िंदगी में धोखे जितने खाए हो हमने,
उम्मीदें देख कंवारे भी भटक जाते हैं।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०८-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
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