अकेले में रोये जितने निखर आए,
अंधेरों में साए कितने उतर आए।
मेरे शागिर्द ही तो मेरे दुश्मन ठहरे,
खुद की खोज करूँ तो नज़र आए।
शाम गलियों में सन्नाटा ही रहता है,
कुछ तकल्लुफ करूँ तो ख़बर आए।
मेरे सीने में अक्सर बात चुभी रहती,
गर उसे निकाल लूँ तो सुधार आए।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(०२-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
उम्दा जज्बात..
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
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