दरिया में जितने ठिकाने ढूंढ लाए।
जाने कैसी खोज में निकले हम,
शहर से पुराने घराने ढूंढ लाए।
हालत ने रुसवा किया इस कदर,
बिखर के उतने जमाने ढूंढ लाए।
कमी हो गयी मुहल्लों के प्रेम की,
निकल के उतने दीवाने ढूंढ लाए।
कह सके दिल की बात औरों से,
सफर से उतने सयाने ढूंढ लाए।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०१-सितंबर-२०१४)
बेहद उम्दा
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