चेहरे रातों में ऐसे भी तपते हैं।
गुमनामी में चिराग लेके खोजते,
मोहरे राहों में ऐसे भी सजते हैं।
पलभर में बदलते पैंतरा अपना,
नखरे बाहों में ऐसे भी लखते हैं।
बात हो तो कोई भूले भी कैसे,
पहरे यादों में ऐसे भी चलते हैं।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०८-सितंबर-२०१४)
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