रास्ते पे खड़ा
कदम चाप गिन रहा।
दर्द
अपनी पोटली
सौपने को मजधार खड़ा।
रोज़ की
गुजरती ज़िंदगी ने
अचानक राइट-टर्न* ले लिया।
गम..तनहाई...
अब मेरी
शागिर्द नहीं ठहरी।
नए रास्तों नें
मुझमें गजब
उम्मीद जागा दिया।
हवाएँ...तस्सवुर....
ख़्वाब... तबस्सुम....
मेरे सिपाही बन गए।
शुक्रगुजार हूँ,
एक झटके में,
ज़िंदगी से लड़ना,
कितना आसान कर दिया।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०१-सितंबर-२०१४)
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