बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 1 सितंबर 2014

हालत


ज़िंदगी के इतने बहाने ढूंढ लाए,
दरिया में जितने ठिकाने ढूंढ लाए।

जाने कैसी खोज में निकले हम,
शहर से पुराने घराने ढूंढ लाए।

हालत ने रुसवा किया इस कदर,
बिखर के उतने जमाने ढूंढ लाए।

कमी हो गयी मुहल्लों के प्रेम की,
निकल के उतने दीवाने ढूंढ लाए।

कह सके दिल की बात औरों से,
सफर से उतने सयाने ढूंढ लाए।
________________________
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०१-सितंबर-२०१४)

1 टिप्पणी: