बिसात पर,
उलझे पड़े
मोहरे बेईमान।
घोड़ा अपनी
चाल भूला,
हाथी ने
अपना ध्यान।
वज़ीर लेकर,
भागा रानी।
राजा खड़े
रहे मचान।
ऊंट पड़ा
समतल में,
प्यादे बन
गए मेहमान।
सब एक-एक
कर बदले चेहरे,
नकाब लगा
निकले इंसान।
काले-सफ़ेद के
खेल में परखा,
अपनो की
असली पहचान।
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शतरंज ज़िंदगी की - डायरी के पन्नो से
©खामोशियाँ-२०१४//११-अगस्त-२०१४
प्रभावशाली रचना..
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