बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 4 मार्च 2015

ज़िंदगी की सिग्नल



ज़िंदगी
भी कितने
सिग्नल क्रॉस
करती आगे ही बढ़ती।

लाल देख
रुकती नहीं।
हरे पर जरा
सहम सी जाती।

यादों
की चालान
काटे भी गर कोई।
तो उम्मीदों
की रिश्वत थमा
आगे बढ़ती जाती।

ये ज़िंदगी
भी कितने
सिग्नल क्रॉस
करती आगे ही बढ़ती।
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ज़िंदगी की सिग्नल
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (०५-मार्च-२०१५)

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