बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

यादों से लड़कर



बदलते वक़्त में कौन खड़ा होता है,
नज़रों से गिर के कौन बड़ा होता है।

देखते है पुराने गुज़रते लम्हे दूर से,
पास होकर वहाँ कौन पड़ा होता है।

ज़िंदगी के पहिये पर बढ़ते ही जाते,
यादों के ताबूत में कौन गड़ा होता है।

समझौता कर लेते अपने दिलासों से,
ख्वाबों से लड़कर कौन कड़ा होता है।
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यादों से लड़कर (२६-फरवरी-२०१५)
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल

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