बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

गुलाबी सपने



सपने गुलाबी आँखों में उतर जाएंगे,
हम चाहेंगे तो यादों में संवर जाएंगे।

वक़्त बेरहम हैं गुज़रता ही जाएगा,
गर सोचेंगे तो ख्वाब बिखर जाएंगे।

नजूमी मिले तो पूछ इत्तिला करना,
वो लकीरों में कहाँ कैसे गुज़र जाएंगे।

निकलते है लोग रोज़ घरों से अपने,
रात आते फिर किसी सफर जाएंगे।

उम्मीदें काफी लगा ली ज़िंदगी से,
गुलाब बोये तो काटें निखर आएंगे।

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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (७-फरवरी-२०१५)

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