बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 11 मार्च 2015

पुरानी तस्वीरें



यादों के बस्ती की बस इतनी सी तो पहचान है,
चार दिन की दुनिया में दिल अकेला मेहमान है।

दर्द उठता ही रहता है हर मंजर में आज कल तो,
आँखों से उतरा उदास कतरा आज भी बेजुबान है।

गलत कहते है वो अजनबी बनकर मिला है मुझसे,
मेरी दुनिया तो उसके लिए जाने कबसे वीरान है।

पुरानी तस्वीरों में कितना कुछ छुपकर दबा होता,
गुम हुई वो दुनिया अपनी भी वहीं कहीं बेजान है।

प्यार के बदले इतना प्यार मिला कभी सोचा नहीं,
ख्वाबों में मिलते रहते उनका हम पर एहसान है।
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पुरानी तस्वीरें
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (११-मार्च-२०१५)

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