सजा गलतियों की तुम दे ही दिया करो,
खुशी लेकर गम मुझको दे ही दिया करो।
गफलत में क्या जीते रहे हर दिन अब,
आँखों के चटखारे रोज दे ही दिया करो।
गुरूर सा हो जाता खुद पर कभी-कभी,
मौके ऐसे ज़िदगी कभी दे ही दिया करो।
चेहरा खुद का बदलने लगा हूँ आजकल,
अक्स आईने में कभी दे ही दिया करो।
लम्हा ठहर सा गया आगे बढ़ता ही नहीं,
अधूरे वादों की टोकरी दे ही दिया करो।
मंज़िलें भी अलग अब रास्ते भी अलग,
नक्शों में कुछ चौराहे दे ही दिया करो।
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" सजा "
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१४-मार्च-२०१५)
सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंअद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
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