बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 10 मार्च 2015

इश्क़-ए-गुब्बारे



दिल जिसको पुकारे उन्हे बुला लीजिये,
यादों के झूलों को फिरसे झुला दीजिये।

होंठों से बयान ना होते हैं कुछ फसाने,
आँखों से कुछ तीर फिरसे चला दीजिये।

हवा निकाल गयी रूठना-मनाना खेलते,
इश्क़-ए-गुब्बारे को फिरसे फुला दीजिये।

शह-मात कहाँ होती इस गज़ब खेल में,
वजीर को असलियत फिरसे बता दीजिये।

अकेले खोजोगे तो मिलेगा जरूर ही कोई,
पुराने दिये में उम्मीद फिरसे जला दीजिये।
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" इश्क़-ए-गुब्बारे "
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(११-मार्च-२०१५)

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