बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 7 मार्च 2015

नाराज़ चाँद



खिड़की
पर चाँद
अटक सा गया है।

हिलता नहीं
डुलता नहीं
गुस्से से धुआँ हैं।

मुंह फुलाए
नज़र घुमाए
बैठा है उदास सा।

कुछ
कहा-सुनी
हो गयी सितारों से।

बुझ गए
फ़लक के झालर
लापता है मनाने वाले।

कब
तक मानेगा
कब
तक जागेगा।

कुछ पता नहीं,
आज रात
देर तक होगी शायद।
आज बात
देर तक होगी शायद।
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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(७-मार्च-२०१५)

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