दिन मुंह
चिढ़ाता रहता,
पूछता कैसे हो
आजकल तुम।
मैं भी
चुप सा रहता
कुछ
देर बाद कहता।
जैसा
छोड़ गया था
एक अरसे पहले
बस वैसे ही हूँ।
बस थोड़ा
घमंडी हो गया था।
बस थोड़ा
गुस्सैल हो गया था।
अब
धरा-तल पे हूँ।
नहीं उड़ना ऊंचा।
नहीं हँसना
गला फाड़कर।
अब
शांत सा है,
सब कुछ तो।
अब
शिथिल सा है
अरमान अपना।
सब खुश
पर मन में हलचल।
थोड़ा
निर्जीव सा
हो गया हूँ
बाकी
ए ज़िंदगी
सब ठीक है।
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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१३-मार्च-२०१५)
भावपूर्ण रचना ,बधाई
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