अचानक से कितना कुछ बदल गया,
बदली हटी सूरज फिल से खिल गया।
ज़िंदगी अपनी जेबों में कहाँ टटोलते,
फलक से टूटा तारा आज सिल गया।
इतना मदहोश क्यूँ होता तू फिर से,
भींड में फिर कोई सपना मिल गया।
खेल ही खेलते बीत गयी उम्र अपनी,
यादों के खेतों में उम्मीद हिल गया।
डायरी के पन्ने भरेंगे और क्या होगा,
कलम सूखती नहीं वो बस दिल गया।
________________
©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१३-मार्च-२०१५)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें