बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

अचानक



अचानक से कितना कुछ बदल गया,
बदली हटी सूरज फिल से खिल गया।

ज़िंदगी अपनी जेबों में कहाँ टटोलते,
फलक से टूटा तारा आज सिल गया।

इतना मदहोश क्यूँ होता तू फिर से,
भींड में फिर कोई सपना मिल गया।

खेल ही खेलते बीत गयी उम्र अपनी,
यादों के खेतों में उम्मीद हिल गया।

डायरी के पन्ने भरेंगे और क्या होगा,
कलम सूखती नहीं वो बस दिल गया।
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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से) (१३-मार्च-२०१५)

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