भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
मंगलवार, 29 जुलाई 2014
Rule Book - An Overload
सख्त नियम/जटिल कायदे/उलझा इंसान।
कायदे कानून में बंधा चेहरा। किताबी बातों से लदा इंसान।
हमने थोपे है अपने कायदे दूसरों पर। कुछ ऐसे बंधन जिसकी कभी जरूरत नहीं थी। जिंदगी को गुरुकुल जैसे जिया है हमने। कुछ किताबी आदर्श/कुछ व्यवहारिक परम्पराओं को ढोते आए हैं। ऐसा नहीं है सब अनर्गल था, पर इसकी वजह से मेरी जो छवि है वो कड़क शासक के रूप में बन गयी हैं। या कभी-कभी तो लोग घमंडी तक की संज्ञा दे जाते।
हाँ। हमने अपनी रूल बुक के हर पन्ने को साकार करने की कोशिश की हैं। कामयाब हुआ हूँ की नहीं ये तो शर्वशक्तिमान महाकाल ही बता पाएंगे।
अब इस छवि को बदलने का समय आ गया।
हाँ हे ईश्वर !! मुखौटे नहीं लगाए है हमने कभी भी। वही किया जो वक़्त की अदायगी थी। लेकिन अब और इस किताब को ढोना मुमकिन नहीं। काफी भारी हो चुकी है ये पन्ने जुडते गए हैं इसमे। मायने/एहसास/विचार/कायदे सब एक दूसरे से लड़ रहे। किन्ही दो मजहब के इंसान के जैसे।
Rule Book - An Overload
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(३०-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नो पे)
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बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..अब हल्के हो जाना है
जवाब देंहटाएंThe cup is filled up to the brim----impossible to have any more beautiful.
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