बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

इंसान


इंसान जलती
भट्टी होता।

लोग सेंकते
अपनी रोटी,
बारी बारी से।

कभी किसी की
रोटी जलती,
तो कभी
किसी का हाथ।

फिर भी बड़े
प्रेम से खिलाता,
दिन का निवाला।

खाकर फिर
प्यार से देखते,
रोती  भट्टी
राख़ रहती तबतक।

©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल
(३०-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नो से)

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