अनर्गल बातों मे घुसना छोड़िए,
चलती चक्की में पिसना छोड़िए।
आपका वजूद आपकी सादगी है,
नए सलीकों में फंसना छोड़िए।
गलती हो गयी तो मान लीजिये,
बेवजह दूसरों को कोसना छोड़िए।
जरा आराम से काटिए सुबह-शाम
रोज़ रोज़ जिंदगी को घिसना छोड़िए।
किस्मत लकीरों की मोहताज नहीं
उसी को पकड़ के सोचना छोड़िए।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२५-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
क्या बात है......थोडा सा रूमानी हो जाएँ.....बहुत खुबसूरत भाव को शब्द दिए हैं आपने
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