भूल जाता,
पन्ने लिखना
डायरी के।
दिन हर रोज़
एक सा ही तो रहता।
सुबह के अखबार से,
रात की खामोशी तक।
आखिर,
कॉपी-पेस्ट ही
तो करते है हम।
आस की लाईमलाइट
मे आज भी चलती है,
सपनों की रील।
आजकल,
रिवाइंड बटन
काम नहीं करता।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(२२-जुलाई-२०१४)(डायरी के पन्नो से)
बहुत ही सुन्दर शब्दानुभूति
जवाब देंहटाएंलगता है ये कविता मेरे लिए रची गई है.. मन को छू कर निकल गई...
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