बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

दर-बदर



दर्द से मिले तो बाज़ार खोजते हैं,
रूठे दरिया को हज़ार खोजते है।

चर्चे गिने लें तो बहुत कम मिलेंगे,
कहने को कितने लाचार खोजते हैं।

दर-बदर फिरते हैं टूटे सपने थामे,
दिल को सिलने औज़ार खोजते हैं।

नशे में रहे तो दिक्कत कहाँ होती,
टूटे सिगार को बीमार खोजते है।

गिरते पलकों के रेशों उलझ कर,
लकीरें को पलट इशरार खोजते हैं।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०४-नवंबर-२०१४)

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