बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

उम्मीदों के पतंग


पतंग
लेके लाया हूँ
उम्मीदों के आज...!!

अब तो
आजा तू
फिरसे मंझे बांधे
फिरसे कोई पतंग काटे....!!!

लाल वाली
अकेली उड़ रही
कटने को बेताब तुझसे...!!

सफ़ेद
घमंडी ठहरी
आ तोड़े गुरुर उसके...!!

नीला
फलक इंतज़ार
करता है आजकल...!!

हवाएं
सूनी-सूनी पड़ी
सब खोज रहे बस....!!

वही
छींट वाली
गुलाबी पतंग
जो लापता है बरसों से...!!

पतंग
लेके लाया हूँ
उम्मीदों के आज...!!

अब तो
आजा तू
फिरसे मंझे बांधे
फिरसे कोई पतंग काटे....!!!

©खामोशियाँ-मिश्रा राहुल-(२७-नवम्बर-२०१४)

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