भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शनिवार, 8 नवंबर 2014
ज़िंदगी की लाईम लाइट
ज़िंदगी
की लाईम लाइट,
में तनहा बैठकर देखिये..!!
गुलाबी अरमान
कहीं किताबों के बीच
मुरझा के जरूर बिखरे होंगे....!!!
कुछ
सवालों के जवाब
अक्सर सुलगती अंगीठी
तले राखों में मिलते होंगे....!!!
वादों से
पोटली फटी मिलेगी
जहाँ जगह-जगह से
कसमें गिरती दिखाई देंगी....!!
वक़्त अंधी
दौड़ में भागते दिखेगा...
छूटते दिखेंगे सपने जो आपने
बुने होंगे कभी साथ मिल बैठकर...!!
कभी ज़िंदगी
की लाईम लाइट,
में कभी तो तनहा बैठकर देखिये..!!
©कॉपीराइट-खामोशियाँ-०८-नवम्बर-२०१४
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