बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 9 नवंबर 2014

माँ


गिरते गए हम उठकर चलना सिखाया,
जिल्लत के अंधेरों से उठना सिखाया...!!

ख्वाइश में इतनी की अल्लाह दुआ करे...
दुआ हथेली पर रख ढंकना सिखाया...!!

उपवास भी रखा खूब मन्नत कमाया,
घर के भी काम कर जूजना सिखाया...!!

जिद्दी थे कितना पकड़ बैठ भी जाते थे,
हर खुशी को मुंह रख चखना सिखाया...!!

बहस हुई अक्सर चिल्ला पड़े हम भी,
हँस-हंसकर फिर गले लगना सिखाया...!!

चुप रहे हम दिन भर कुछ भी ना कहा,
सीने से लगाकर सब कहना सिखाया...!!

आँखों की नींद तक किसी कोने उतार,
सारी रात जाग सपने देखना सिखाया....!!

आज खड़े हैं अपने पैरों पर हम सब,
उनके उम्मीदों का फल कहाँ लौटाया...!!

©कॉपीराइट-खामोशियाँ // 09-नवम्बर-२०१४
- मिश्रा राहुल // (ब्लोगिस्ट एवं लेखक)

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