बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

मैं हार मानता।



चल मैं
हार मानता।

अब तो
बंद कर दे ना
बरसों पुराना
लुका-छिपी का खेल।

बहुत
तलाशा तुझे,

फ़लक में
सितारों के बीच।
क्षितिज में
बहारों के बीच।

मिली ना
मुझे तू कहीं पर।

बालों में रंगों के
लाले पड़ गए,
आँखों के कटोरे में
छाले पड़ गए।

सपनों नें
रास्ते बदल लिए,
वक़्त नें
वास्ते बदल लिए।

उम्मीद थी
कभी तो
टिप मारेगी तू।

उम्मीद थी
कभी तो
जीत मानेगी तू।

हाँ चल मैं ही
हार मानता हूँ।

अब तो
बंद कर देना
बरसों पुराना
लुका-छिपी का खेल।

©कॉपीराइट-खामोशियाँ-२०१४-मिश्रा राहुल

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