बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

इंतज़ार



मूर्तियों में भगवान खोजते है,
गलियों में इंसान खोजते है।

इंतज़ार करते है अकेले घर,
अपनों में मेहमान खोजते है।

पूछते कहाँ खैरियत अब तो,
रास्तों में सलाम खोजते है।

तोड़ते है दिल उम्मीदों का,
सपनों में जहान खोजते है।

टूट के बिखरती ज़िंदगी में,
किस्तों में अरमान खोजते है।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो में)(०२-अक्तूबर-२०१४)

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