भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शनिवार, 25 अक्टूबर 2014
यादों की सिनेमैटोग्राफी
कभी कभी...
मन होता है...
यादों की स्क्रीनप्ले...
निकाल कैद कर लूँ....!!
सारे के सारे
एहसासों को डाइलॉग
देकर रेकॉर्ड करा लूँ...!!
एक एक क्लिप...
एक एक सांस जैसी...
ताज़ी है अभी भी जेहन में...!!
कभी कार्बन...
रखों तो जरूर...
छप जाएंगे सारे अल्फ़ाज़...!!
ढेरों गपशप के
इर्द-गिर्द चलती....
खुशनुमार सिनेमैटोग्राफी....!!
चेहरों पर
लिपटे इमोशन..
ढेरों कमेरा एंगल...
खुद-ब-खुद ही
तैयार करते जाते...!!
सुनहरे
लम्हों को बार बार
देखने का जी करता...!!
आखिर
कोई करता...
क्यूँ नहीं इन
खूबसूरत लम्हों की एडिटिंग...!!
©खामोशियाँ-2014//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(25-अक्तूबर-2014)
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