बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

जन्नत



नज़रों में कैसा इशारा हो गया,
दिल मेरा कहाँ तुम्हारा हो गया।

पलट कर खोजते तुझे रास्तों में,
मेरा मन आज आवारा हो गया।

जुगनू चुराता रहा रंगीन रातों से,
अंधेरों में वहाँ सितारा हो गया।

सपनों में देखा था जन्नत जैसा,
प्यारा एक जहाँ हमारा हो गया।

मुकद्दर आया खुद पास चलके,
रूठता था कभी बेचारा हो गया।

डूबते रहा था जहाज भी दरिया में,
मन्नत से आज किनारा हो गया।
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(डायरी के पन्नो से)(०७-अक्तूबर-२०१४)

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