बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

धोखा


नकाब...फरेब...
धोखा...साजिश...!!

सुबह उठो तो
बारिश का धोखा,
चमकती रात में
अमावस का धोखा...!!

अकेले पहिये पर
घिसटता इंसान,
जिसको मिलता
कंकड़ का धोखा...!!

बसंत खड़ी पास
फिर भी मिलता,
अक्सर गुलों के
बिखरने का धोखा...!!

सुख के वक़्त में
मिला दर्द का धोखा,
जीत की स्वाद में
रहता हार का धोखा...!!

ज़िंदगी क्या है ??
साजिश या धोखा ??
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©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१७-अक्तूबर-२०१४)(डायरी के पन्नो से)

3 टिप्‍पणियां:

  1. कल 19/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  2. वाह …मन के कोमल भावो का बहुत सुन्दर चित्रण किया है…………बेहद शानदार प्रेममयी प्रस्तुति।

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