भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
बुधवार, 16 अप्रैल 2014
देश
राख़ खोई कस्ती को बदनाम होने दो,
साख खोई बस्ती को श्मशान होने दो।
कलई खुल जाती सब झूठे वादों की,
आदमी से आदमी की पहचान होने दो।
जुबान खुलेगी तो काट दी जाएगी,
पन्नो से पन्नो का समाधान होने दो।
एक ही छत तले बदल जाती फ़ाइलें,
कोनो से कोनो को सावधान होने दो।
बदल जाएंगे जीने के मायने बड़े जल्द,
अमीरों से अमीरों को परेशान होने दो।
शान से चलेगी इस देश की भी गाड़ी,
बहानो से बहानो का पूर्वानुमान होने दो।
©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
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कलई खुल जाती सब झूठे वादों की
जवाब देंहटाएंआदमी से आदमी की पहचान होने दो।
...........जबरदस्त
कलई खुल जाएगी दीदी ... ये सब सोना, चांदी की कलई ही है अंदर तो सब जंग लगे लोहे है।
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