आज तो सभी आस्तिक थे। सभी मंदिरो, सभी मस्जिदों, सभी गुरद्वारों और शायाद गिरजाघरो से अपनी अपनी मन्नतें ले के जो आए थे। आज तो सौहार्द था, ना कोई हिन्दू ना कोई मुस्लिम....आज तो बस सभी भगवान के सच्चे सेवक थे। बड़ी बारीकी से पता किया तो मालूम चला आज बड़ा धमाकेदार पेपर है। लोग हौआ भी तो खूब बनाते पेपर से ठीक एक दिन पहले। कुछ तिकड़म-बाज़ पेपर उड़ाने के लिए रातों तक घूमते पाये जाते, तो कुछ अपने अंदाज़ से चपटेरो के हिस्सो को आने का दावा करते पाये जाते। सबको पता होता की ये सब फर्जी है नकली है, पर रिस्क कौन ले।
सुनील और विक्रम दोनों सेकंड इयर इलेक्ट्रॉनिक्स डिपार्टमेंट के बंदे। देखने मे बड़े सज्जन, पर क्लास मे इनसे बड़ा गुंडा कोई ना था। अरे पढ़वाइया जो थे। रोज क्लास करना, हर लैक्चर अटटेंड करना, समय पर काम पूरा रखना। अरे कभी कभी विक्रम सनडे तक आ जाता था, सुनील उसे खींच ले जाता था। साल भर जाने कौन सी पढ़ाई करते थे दोनों, पढ़ते भी थे या विलन बनाने आते थे रोज़।
आज तो पेपर का दिन था। उनके चेहरे पर भी खतरे की घंटी देखते विजय से रहा ना गया और बोल पड़ा, "अबे तुम लोग भी अभी तक पढ़ रहे, एक तो रोज़ आते हो, फिर भी कुछ बाकी ही रहता तेरा"
विक्रम-सुनील को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था जैसे। विजय जाओ, "भगवान के लिए हटो, आज वही बेड़ा पार कराएगा...ईएमएफ़टी जो है"
विजय पलटवार किया,"तू तो नास्तिक है, तो भगवान-भगवान कैसे जपने लगा..."
विक्रम बोला, "भाई दूसरों के चक्कर मे पंगा कौन ले, कहीं भगवान सच मे हुआ तो अपनी तो बैंड बजेगी ही ना"
विजय कुछ कहा नहीं वो मस्त-मौला था। सबको छेड़ता रहता, खींचता रहता बंदा।
दो टाइप के लोग मिलते एक्जाम के समय। पहले जो किताब पूरा छूए होते और दूसरे वो जो एकदम नहीं पढे होते। पहले ज्यादे परेशान रहते दूसरे तो जानते ही नहीं क्या आएगा।
चलो घंटी बज गई और सब अंदर प्रवेश कर लिए।
सबके चेहरे के हाव-भाव एक जैसे, हसते-खुश होने की एक्टिंग करते चेहरे। खुद के ऊपर के दबाव को मन मे समेटते चेहरे। कुछ मज़ाक के बाद फिर ईश्वर की ओर आशा से देखते चेहरे। अंदर परीक्षा कक्ष मे गुसते हुए भी सहमे हुए है। परीक्षा शुरू हो गई पेपर देखते ही तोते उड़ गए लोगों के। कलम थम चुकी थी लोगों की,बस नज़रे चल रही थी। देख रही थी एक दूसरे को बड़ी लाचारी से। सबके चेहरे पर की नसें तनी हुई थी और चिंता की लकीरें बार बार ढेरों आकृतियाँ बनाती ही जा रही थी। आज घड़ी भी सुस्त पड़ी, और दिनो की तरह भाग नहीं रही थी। कभी कभी तो पेपर छूट जाता था टाइम की वजह से आज घड़ी भी रुक गयी लगता वो चिढ़ा रही हो।
विक्रम-सुनील जैसे कईयों की आज आस्था दांव पर लगती दिख रही थी। मन ही मन कितनी ख्याल आ रहे थे, पढ़ा भी था बजरंग बली को "छप्पन भोग" से आधा किलो लड्डू तक की भी डील तय हुई थी। फिर भी उन्हे तरस नहीं आया इस अनन्य से भक्त पर। जाने कितने बद्दे-बद्दे विचारो से बजरंगी समेत पूरे हिन्दू भगवानों की सत्य-निष्ठा संदिग्ध कर दी दोनों ने। परीक्षा भवन से निकलते ही ढेरो वादे किए सब ने अगली बार से पहले ही सब पढ़ लूँगा, आखिरी टाइम मे कुछ होता नहीं। भगवान भी साथ ना देता।
ये बात सिर्फ विक्रम-सुनील की नहीं थी हजारो लोगों की थी, बस नाम अलग होते थे।
पर फिरभी किसी तरफ अनाब-सनाब लिख कर लोगों ने पूरा किया पेपर। आखिर बाहर जो आजादी उनका इंतेजार कर रही थी। जहां वे बेफिक्र रात तक घूम सके, क्रिकेट मैच का पूरा लुत्फ उठा सके। जाने कितने दिनो से क्रीकइन्फो पर ही क्रिकेट देखते, वे खिलाड़ियों के लाइव एक्शन को जो तरस गए थे। कुछ के दो महीने के फिल्म का कोटा भी अभी तक पूरा नहीं हो पाया वो तो आज ही टोररेंट लगा के सोएँगे, ताकि सुबह तक डाउनलोड हो जाए। सब लग गए रम गए अपने पुराने ढर्रे मे भूल गए सारे वादे, जो कभी खुद से किए थे। आदमी एक्जाम से ठीक पहले जितना सच्चा हो जाता उतना अगर हर पल रहे तो परीक्षा कभी समस्या रहे ही क्यूँ।
दो महीने बीते, अब रिज़ल्ट आने के दिन आ गए। रात के बारह बजे। फिर से पूरे हॉस्टल मे टेंशन का माहौल व्याप्त। और तो और इस दिन हॉस्टल का वाई-फाई जरूर नहीं काम करता। काम करता तो बस 2जी का धीमा कनैक्शन जो की सस्पेन्स बनाने की आग मे घी का काम करता। वैबसाइट खुल भी जाती तो करीब करीब दस बार करने पर किसी एक का रिज़ल्ट सुनाई देता, फिर चरचाए गरम हो जाती। बहरहाल थोड़े लोग तो ऐसे रहते, जो अपने रिज़ल्ट से पहले पड़ौसी का देख लेते। दो बातें उसमे भी होती पहली ये कि शायद उन्हे एक साथ दर्द झेलने का दम ना होता या फिर दोनों फ़ेल होंगे तो दर्द बांटेंगे।
सुबह चार बजे तक लगभग सबके दुखड़े हर लिए जाते। जो कभी पास होने की दुहाई दे रहा होता, वो रिज़ल्ट आते ही शेर बनके कम नंबर खातिर भगवान को कोसता। जो फ़ेल होते होते बचते, वो ये कह बच जाते की अभी तो तूने फ़ेल करा दिया होता रे भगवान। फ़ेल होने वाले तो सीधा जाके उन रुपयों का बैक-पेपर का फॉर्म भरते। मजबूरी है करे तो क्या घर बता सकते नहीं और पॉकेट मनी मे इतना उतार चढ़ाव घर के खातों मे दिख जाता।
मतलब बजरंगी को लड्डू के बस वादे किए जाते और वो बेचारे खिसियाए अगले परीक्षा का फिर से इंतज़ार मे जुट जाते। वो भी सोचते अभी एडवांस देने वालो का ही काम करूंगा अन्यथा बयान से पलट जाते भक्त-गण।
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
College ke dino ka satik chitran kiya h aapne..lekin hamare zamane me torrent pe filme download karne ka zamana nhi tha..hum Gorakhpur ke Vijaya, raaj, Jubilee aur maneka me advance booking kara kar paper ke baad filme dekhte the..leikin ghatnaye waise hi ghatati thi jaise is kahani me ghati h..wahi masti ka alam aur..exam ke baad raat ke 1-2 baje tak ghumna firna..muntain dew pite hue college ka chakkar lagana..aur logo ke ek dusre ke sath chal rhe chakkaro ke bare me suna ke maje lena..aur aahe bharna..
जवाब देंहटाएंWo Pancham ka Samosa aur jamuna ke Parathe Butter laga ke..uspe se Special Chai..
Garmiyo me College campus me aam ke pedo par se amiya todna aur namak laga ke usko khana..OOOhHHHHOOOOO .....Misra Ji wo Din BAHUT YAAD AATE HAI..Sach me I MISS THOSE DAYS & THOSE MITRA-MANDALI ALOT..
Sahi kaha Amit....Yaadein Anmol hai..
हटाएंशुरुआत कि ६ पंक्ति प्रथम के वर्ष छात्रों को समर्पित है :
जवाब देंहटाएंपहले दिन का क्या हाल लिखूं ;
या intro का अत्याचार लिखूं ;
teacher की धिक्कार लिखूं ;
या क्लास में अपनी हार लिखूं ;
अपने कंधो का भार लिखूं ;
या assignment की ललकार लिखूं;
कुछ आम लिखूं या खास लिखूं या जीवन का इतिहास लिखूं |
आगे की कुछ पंक्तियाँ हीर -राँझा ; लैला - मजनू के परंपरा वाले प्रेमी और मेरे दोस्तों को समर्पित है :
लड़कियों से आँखे चार लिखूं ;
या मैम से दिल का प्यार लिखूं ;
अपने दोस्ती का परवान लिखूं ;
या संग उनके पल में बीते साल लिखूं ;
लिखूं कहानि कैंटीन की ;
या seniors की भौकाल लिखूं ;
लेट रही हर पहली class लिखूं ;
या बजे पाँच का ख्याल लिखूं |
कुछ आम लिखूं या खास लिखूं या जीवन का इतिहास लिखूं |
आगे की कुछ पंक्तयां उन श्रेष्ठ जानो को सर्पित है जिनके होने से विश्वविद्यालय की गरिमा और topers की इज्जत बनी रहती है , ये हैं हमारे back holder बंधू :
physics की सत्य प्रकाश लिखूं ;
या math का H . K . DASS लिखूं ;
बँक से अपना प्यार लिखूं ;
या डिफाल्ट लिस्ट में नाम लिखूं ;
पढ़ - पढ़ कर आँखें लाल लिखूं ;
या sessionals में binary की भरमार लिखूं ;
teacher का internal पर अत्याचार लिखूं;
या कुछ कर दिखाने की चाह लिखूं |
कुछ आम लिखूं या खास लिखूं या जीवन का इतिहास लिखूं |
ये कुछ पंक्तियाँ सेमेस्टर को समर्पित है :
सेमेस्टर की छोटी रत लिखूं ;
या हर वक़्त की नींद ख़राब लिखूं ;
कुछ उलझे हुए सवाल लिखूं ;
या उनके फोन की याद लिखूं ;
पास होने की फरियाद लिखूं ;
या बैक की मोहब्बत यार लिखूं |
कुछ आम लिखूं या खास लिखूं या जीवन का इतिहास लिखूं |
अंतिम की पंक्तियाँ उन चीजो को समर्पित है जिन्हें हम; चाहे कितना भी टॉप कर ले , दोस्तों के साथ मस्ती कर ले ; NTPC में जॉब मिल जाय, कितनी भी अच्छी girlfriend पा जाय नहीं भूल सकते :
वो चीजे है :
माँ का आँचल ; पापा के डांट की ताकत ; बहन की राखी और भाई का सहारा ;
उन्ही क लिए :
माँ की याद की तड़प लिखूं ;
या पापा की फटकार लिखूं ;
बहन से प्यारी टकरार लिखूं ;
या भाई कि शर्ट उधार लिखूं ;
कुछ आम लिखूं या खास लिखूं या जीवन का इतिहास लिखूं ||||||||||||||||||
बहुत खूब तिवारी जी।
हटाएंdhanyavad
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