बड़ी दूर देखा उन्होने कि ड्राईवर की सीट के पीछे वाली सीट पर एक लड़का बैठा है और उसको बाजू की सीट खाली है। पर शायद "किसी को वो सीट दिख ही नहीं रही थी" दादा ने यही सोचकर बहुत हिम्मत जुटाई और पूरी भींड़ चीरते हुए पहुँच गए।
बेटा "आप अगर अपना बैग हटा लो तो एक बूढ़ा आदमी बैठ जाए" चाचा ने बड़ी आस भरी निगाहों से उसकी तरफ देखकर बोला।
पर लड़का तो हैडफोन लगाए अपनी ही दुनिया मे था। उसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया।
अबकी बार चाचा ने उसे झांकझोरते हुए बोला, "अरे बेटा ज़रा आप बैग हटा लो तो ये बूढ़ा भी बैठ जाए"
लड़का झल्ला गया, "देख बुड्ढे इस सीट पर अभी कोई आएगा और तू बूढ़ा है तो घर पे रह क्यूँ बस मे सफर करता है"। चाचा खिसियाते हुए वहाँ से हट गए, बुरा तो लगा था उन्हे पर क्या करे सब कोई उनके बस मे थोड़े है।
तब तक पीछे से आवाज़ आई, "काका आप आओ यहाँ बैठ जाओ मेरी सीट पर ये सहबजादे है उठेंगे नहीं"। काका ने नज़र घुमाई तो देखा, एक दुबला पतला युवक जिसका एक टांग नहीं था बैसाखी के सहारे उठा और खड़ा हुआ। चाचा ने माना किया, बेटा तुम कैसे खड़े....??
इतना कह कर रुक गए जैसे उन्होने आधी जुबान मुंह मे ही गटक ली हो। टेंशन ना लीजिये काका आप हमको कमजोर ना समझिए। आप आराम से बैठिए।
बस इतना सुनते ही चाचा की आंखे भर आई। वो बच्चे से कुछ बोले तो नहीं पर हाँ उनकी आंखे वो सारे आशीर्वाद दे देना चाहती थी उसको जिसके लिए प्रकृति भी गवाही नहीं देती।
- मिश्रा राहुल
(ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
आपकी लिखी रचना बुधवार 16 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
क्या बात है दिग्विजय जी।
हटाएंऐसी ही है ये दुनिया !
जवाब देंहटाएंकिसी को आदर देने मे कौन सा पैसा लग जाता सबका।
हटाएंइसी का नाम दुनिया है ...
जवाब देंहटाएंपर दिगंबर साहब थोड़ी तबदीली जरूरी है आखिर कब तक ऐसे चलेगा यूं तो हमारी संस्कृति को धब्बा लग जाएगा। जो विश्व विख्यात है।
हटाएंमन को कोने को छूती हुई कथा.....आज के परिवेश ,संस्कार पर प्रश्नचिन्ह लगाती हुई।एक ज्वलंत प्रश्न छोड रही है हम आत्मावलोकन करें कि प्रतिदिन अपने नैतिक मूल्यों की अवमानना अवहेलना एवं परित्याग करते हुए हम किस संवेदनहीन युग की ओर अग्रसर हो रहे हैं। सुन्दर रचना हेतु बधाई।
जवाब देंहटाएंसंवेदन हीनता ही आजकल के युवा की पहचान बन गयी है। वो तो आरक्षित हो गया है खुद के लिए बाकी उसको कुछ दिखता ही नहीं।
हटाएंधन्यवाद रविकर जी।
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