बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 13 अप्रैल 2014

कलम देखा है तुमने विरासत कहाँ देखी


कलम देखा है तुमने विरासत कहाँ देखी,
जख्म देखा है तुमने हिम्मत कहाँ देखी...!!!

बरस लगते मुखरे-मुकम्मल करने मे,
लफ्ज देखें है तुमने दिक्कत कहाँ देखी...!!!

जमाने भुला देते झूठी शान बिछाने मे,
भरम देखा है तुमने गफलत कहाँ देखी...!!!

हमने भी छोड़े है रईसी आशियाने तेरे,
रकम देखी है तुमने इज्ज़त कहाँ देखी...!!!

एक वजह खातिर ऐसे कैसे रूठ चली है...
कसम देखी है तुमने चाहत कहाँ देखी...!!!

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 15 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. शब्दों के जाल मे क्या खूब पिरोया है झलकियों को...आपकी यह रचना काबिलेतारीफ |

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    1. संजय जी शब्दों का जाल ही तो मकड़जाल है जिसमे लोग अक्सर फंस जाते।

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  3. उत्तर
    1. हाँ दीदी जख्म देखा है तुमने हिम्मत कहाँ देखी। हिम्मत देखता ही कौन है उसकी लोग तो बस ज़ख्मो पर तरस खाते कौन हर लेता दूसरों के कष्ट लोग तो बस सांत्वना दे जाते।

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