बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

अखबार


खूनी धब्बे सानते है अखबार रोज़,
खुदा छुपके रोता है लाचार रोज़...!!!

पन्ने पलटने का मन ना होता,
बनकर टूट जाते है विचार रोज़...!!!

सड़ते घावो को ध्यान कौन देता,
मायूसी से झाँकता है उपचार रोज़....!!!

शकुनि के पासों मे उलझ ही जाता,
दुर्योधन से भागता है प्रतिकार रोज़....!!!

तम के कुशाशन पर ध्यान कौन देता,
जेबें वजने तौलता है बहिष्कार रोज़....!!!

©खामोशियाँ-२०१४

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