बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

पार्टी


फ़लक पर
औधे लटके हैं
झिलमिलाते झालर...!!

एक तगड़ा
हलोजेन बल्ब भी
झूल रहा...!!

शाम तक खाने
का बुलावा आएगा
पार्टी हैं लगता...!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. पूरी
    परिकल्पना बहुत ही अनोखी है ...आपकी रचनाओं की ये विशेषता रही है
    .....बहुत प्रभावी खासकर हिंसक होते समाज के परिपेक्ष्य में और भी प्रभावित
    करती है .

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    1. दीदी लगता हैं आपका कमेंट गलत पद गया हैं .... जरा इसे देखिये

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