वो अपनी कॉफ़ी पीता और चियर्स कर दुसरे सीट पर किसी से बात करता। उसको मनाता, समझाता प्यार करता। पर मैंने खुद करीब जाकर देखा वहाँ कोई नहीं था।
ये मालूम तो हो गया था कि बड़ा गहरा रिश्ता है उस जगह का उसके के साथ। उसके चेहरे के भाव घड़ियों की सूइयों पर चल रहे थे पल-पल बदलने को आमदा। ढेरों सामानों के बीच उलझा-उलझा सा था वो। उस लिफाफे में ऐसा क्या था जो उसके आँखों को भीगने पे मजबूर कर रहा था। कुछ बोतल बंद टुकड़े, कैप्सूल में उलझे सालों के पीले पन्नो में रोल किए।
उसको ना आज मौसम की फ़िक्र थी ना लोगों की। उसकी दुनिया बस उसी टेबल के इर्द-गिर्द सी थी। वो कुछ सोचता फिर लिखता। उसकी उँगलियों की हरकत से बखूबी दिख रहा था कि वो हर बार कुछ एक जैसे शब्द ही लिखता। काफी देर हो गए लेकिन दूसरा कॉफ़ी पीने वाला नहीं आया। उसकी कॉफ़ी मग उसके आँखों के झरने से पूरी तरह लबालब हो चुकी थी।
मुझे उससे पूछने की हिम्मत तो नहीं हुई पर होटल के मालिक से पूछा तो पता चला पिछले पांच सालों से आकाश दुनिया के किसी कोने में हो वो टेबल आज के दिन पूरे टाइम उसके और किसी निशा के नाम से बुक रहती। हाँ निशा मैडम अब ना आती पर उनकी पी हुई कॉफ़ी मग आज भी आकाश सर लेके आते।…
मैं कुछ बोल ना पाया बस सोचता रह गया.....और जुबान एक ही शब्द भुनभुनाते गए....!!
Love is Happiness...Love is Divine...Love is Truth...!!!
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अधूरी कॉफ़ी - लघु कथा
©खामोशियाँ // मिश्रा राहुल // (ब्लोगिस्ट एवं लेखक)
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