भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शनिवार, 6 दिसंबर 2014
लूडो खेलती है
लूडो
खेलती है
ज़िन्दगी हमसे अक्सर....!!
पासे
फेंकते
किस्मती छः
लाने खातिर बेताब होते...!!
किस्मत
खुलती छः
आते भी तो तीन बार...!!
अपने लोगों
को काट उनके
सफ़र दुबारा शुरू करते...!!
वही रास्ते
वहीँ गलियाँ
दुबारा मिलती जाती...!!
कहाँ से
चोट खाकर
वापस गए...
कहाँ से
जीत की
बुनियाद रखे....!!!
हरे...लाल...
पीले...नीले...
सारे भाव
चलते साथ-साथ...!!
कभी
गुस्सैल लाल
जीत जाता...
कभी
शर्मीला नीला
ख़ुशी मनाता...!!
पीला
सीधा ठहरा
सबको भा जाता...!!
हरा
नवाब ठहरा
नवाबी चाल चलता...!!
दिन
होता ना
हर रोज़ किसी का
कभी
कोई रोता
तो कोई मनाता...!!
लूडो
खेलती रहती
ये ज़िन्दगी अक्सर...!!!
©ख़ामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // ०५-दिसम्बर-२०१४
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