बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 6 दिसंबर 2014

लूडो खेलती है



लूडो
खेलती है
ज़िन्दगी हमसे अक्सर....!!

पासे
फेंकते
किस्मती छः
लाने खातिर बेताब होते...!!

किस्मत
खुलती छः
आते भी तो तीन बार...!!

अपने लोगों
को काट उनके
सफ़र दुबारा शुरू करते...!!

वही रास्ते
वहीँ गलियाँ
दुबारा मिलती जाती...!!

कहाँ से
चोट खाकर
वापस गए...
कहाँ से
जीत की
बुनियाद रखे....!!!

हरे...लाल...
पीले...नीले...
सारे भाव
चलते साथ-साथ...!!

कभी
गुस्सैल लाल
जीत जाता...
कभी
शर्मीला नीला
ख़ुशी मनाता...!!

पीला
सीधा ठहरा
सबको भा जाता...!!
हरा
नवाब ठहरा
नवाबी चाल चलता...!!

दिन
होता ना
हर रोज़ किसी का
कभी
कोई रोता
तो कोई मनाता...!!

लूडो
खेलती रहती
ये ज़िन्दगी अक्सर...!!!

©ख़ामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // ०५-दिसम्बर-२०१४

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