भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
शनिवार, 6 दिसंबर 2014
इश्क की सरजमीं
इश्क की सरजमीं पर अब दिखाई कौन देता हैं,
सब अपनी याद हैं लिखते छपाई कौन देता हैं....!!
वक़्त भी तो जरिया हैं समझ के खुद बदलनें का...
वफ़ा है नीम सी कडवी मलाई कौन देता हैं...!!
कभी चलती थी पुरवाई तो मैं भी राग गाता था,
अभी महफ़िल में भी चीखूँ सुनाई कौन देता हैं....!!
आँखों की छतरियाँ भी निकल आई इस मौसम में,
अब दिल की आग भी बरसे दुहाई कौन देता हैं....!!
खुद गुनाहों की सलाखों में लिपटकर देर तक बैठे,
ये धड़कन छूटना चाहे तो रिहाई कौन देता हैं....!!!
©खामोशियाँ-२०१४ // मिश्रा राहुल // ७-दिसम्बर २०१४
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