बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

फूटबाल ज़िंदगी


ज़िंदगी 
फूटबाल ठहरी...
पाले
बदल-बदलकर....
घिसटती रहती....!!

मंज़िल
के पास
पहुँचते ही,

एक जोर
का झटका
फिरसे पाले में
लाकर
खड़ा कर देता...!!

चलो
खुदा न खासते
मंज़िल
मिल भी जाए...
तो भी क्या...???

फिर
से वही
खेल खेलना
फिर से बीच में
परोसा जाना...!!!

मेरा कभी
एक शागिर्द
ना होता
होते ढेरों सारे...!!

मुझे मारकर
खुश होते
जश्न मनाते....!!!

मैं भी
खुश होता
उन्हे देखकर...!!

फिर किसी
अंधेरी कोठरी में
बैठा इंतज़ार करता

कोई आए
मुझे मारकर
खुद को सुकून पहुंचाए....!!!

ज़िंदगी
फूटबाल ठहरी...
पाले
बदल-बदलकर....
घिसटती रहती....!!

©खामोशियाँ - २०१४ // २८-दिसम्बर-२०१४

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