बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

एक बूढ़ी लकड़ी



एक बूढ़ी लकड़ी.....
लिपटे कितने जंजाल.....!!!

आखिर 
कुंडी के कानो मे 
कब तक फंसे रहेंगे.....!!!
जंग की चादर ओढ़े
बदकिस्मती ताले.....!!!

एक ही कमरे मे कैद.....
ना जाने कितने.....
यादों के गुच्छे.....!!!

कुछ तस्वीरें....
.....कुछ लकीरें.....
अनगिनत साँसे......
महफ़ूज आज भी उन्ही.....
दरीचों मे खोयी.....!!!

कबसे कानो का
एक ट्रांसमिटर*
छुपा रखा वहाँ....!!!

अब तो
दीवाल के रंग भी
पपड़ी छोड़ने लगे हैं.....
कौन कहता आएगा कोई.....!!!
*transmitter

©खामोशियाँ-२०१३

7 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. कौशल जी स्वागत है हमारी खामोशीयों के पटल पर.....!!!

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  2. सुन्दर ... पर कुण्डी की आस टूटती नहीं .. कभी कही कोई तो आयेगा :) सुन्दर रचना बधाई ..शुभकामनाये

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    उत्तर
    1. सुनीता जी
      आस की प्यास बुझेगी ना कभी हम भी जानते हैं......
      तभी तो हर रोज़ पलके उठाकर उधर ही ताकते हैं.....!!!
      और खामोशियाँ की खामोश दुनिया मे आपका स्वागत.....!!!

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  3. यशवंत साहब धन्यवाद.....देर से आने के लिए माफी.....!!!

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