भोर के तारे,सांझ का आलस,रात का सूरज,पतझड़ के भौरे.... ताकते हैं हमेशा एक अजीब बातें जो लोग कहते हो नहीं सकता... चलते राहों पर मंजिल पाने को पैदल चल रहे कदमो में लिपटे धूल की परत... एक अनजाने की तरह उसे धुलने चल दिए...कितनी कशिश थी उस धूल की हमसे लिपटने की...कैसे समझाए वो...मौसम भी बदनुमा था शायद या थोड़ा बेवफा जैसा...एक जाल में था फंसा हर आदमी जाने क्यूँ पता नहीं क्यूँ समझ नहीं पाता इतना सा हकीकत...एक तिनका हैं वो और कुछ भी नहीं...कुछ करना न करना में उसे हवाओं का साथ जरूरी हैं..
रविवार, 31 मार्च 2013
पता पूछती जिंदगी
जिंदगी मजिल का पता
पूछते बीत गयी...!!!
हर सुबह रोज निकलती
घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी
पनवडिये को देख गयी...!!!
चार तनहाइयों बाद
एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज
मेरे कान को गूंज गयी...!!!
हमने भी देख लिया
खांचो में बसे अपने दर्द को,
बस एक बयार पुर्जा थामे
कई आसियाने लांघ गयी...!!!
इस बीच क्या हुआ
किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में देख
बिना चाय पीये निकल गयी...!!!
लौटकर हमने मेज पर
देखा तो पाया,
जाते जाते वो अपनी
यादें ही भूल गयी...!!!
हिम्मत नहीं कि
उड़ेल दे पिटारे उसके,
यूँ साँसे चौपत के
उसे बक्से में तह गयी...!!!
~खामोशियाँ©
~खामोशियाँ©
जिंदगी:एक भंवर....लेख...!!!
हम लाख मन्नते कर ले किसी अन्य को अपने उस संसार की ऊष्मा में जलाने में पर हम उन्हें
उससे परिचित नहीं करा सकते....उसके दुःख, पीड़ा, ख़ुशी, भावनाएं केवल अपने दायरे तक ही नियत रहती हैं ...हमारे अपने लिए होती हैं वो अजब दुनिया... दूसरों के लिए वह एक विचित्र अलग संसार जैसा हैं...वह उसके बारे में जान सकता है, पढ़ सकता है, सुन सकता है... परन्तु उसे महसूस कतई नहीं कर सकता...!!
ठीक ये बात उसी तरह होती जैसे हम छोटे थे ... हमारे बाबूजी बताते थे की हम लाखो मंदाकिनियों में विलीन हैं और उनमे से सिर्फ एक मन्दाकिनी में हम रहते .... और सूरज चाँद धरती आकाश आग पानी...सब सब इस परिवेश तलक ही हैं..दूसरी दुनिया में कुछ भी नहीं ...सिर्फ धुंध से धुधली तस्वीरे हैं ...जो दिखती नहीं इन नाजुक आँखों से..!!!
आज पता चला शायद वो सही थे...!!
~खामोशियाँ©
~खामोशियाँ©
शुक्रवार, 29 मार्च 2013
खिड़कियाँ या सरहद...!!!
दीवाल पर सजी पोट्रेट...
बगल मँडराते झूमर...!!
एक ही कमरे मे कैद...
कितनी जीवंत वस्तुए...!!
कुर्सियाँ भी बिठाने को...
आतुर रहती अपने पे...!!
शायद हफ्तों मे भी...
कईयों की बारी ना आती...!!
पुरानी अल्मारियों मे
पैर जमाये बूढ़े धरौंदे...!!
चांदी की काटी पर झूलती...
काका की बनाई ऑयल पेंटिंग...!!
दोनों ओर खिड़कियाँ...
बिलकुल आमने सामने..!!
मानो मुह चिढ़ा रही...
देख एक दूसरे को...!!
पर ऐसा नहीं शायद...
क्या गज़ब तालमेल हैं...!!
एक की सवाल पर तुरंत
दुजी उत्तर थमाती...!!
कोई एक से देखता...
चलते फिरते मँडराते लोग...!!
तो दूसरी वीरानियों से...
मुखातिब करवा देती...!!
जैसे कमरा ना हो...
हो सरहद की लकीर...!!
दोनों ओर दो समुदाय...
और दोनों से बराबर प्रेम...!!
कई वर्षो की आहुती दी...
अब लोग कहते हटाओ..!!
तोड़ रहे लोग मेरा घर....
मिट रहा हैं मेरा वजूद...!!
हाँ लकीरें ही तो हैं...
पर अब मिट नहीं सकती...!!
पुरानी हो चुकी हैं...
मिटाने पर और गाढ़ी होंगी...!!
~खामोशियाँ©
गुरुवार, 28 मार्च 2013
बुधवार, 27 मार्च 2013
सोमवार, 25 मार्च 2013
शनिवार, 23 मार्च 2013
बुधवार, 20 मार्च 2013
कविताओ के प्रेमियों के लिए अच्छी खबर हैं...!!
दस खामोसियाँ का संकलन....बस आपकी एक क्लिक दूर....!!!
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~खामोशियाँ©
मंगलवार, 19 मार्च 2013
सोमवार, 18 मार्च 2013
रविवार, 17 मार्च 2013
दिल
दिल भी
तो शायद कागजी ठहरा...
वक़्त आया
तो आवाज बना लिया...!!
बच्चा आया
तो जहाज बना लिया...!!
शहर आया
तो रिवाज बना लिया...!!
~खामोशियाँ©
तो शायद कागजी ठहरा...
वक़्त आया
तो आवाज बना लिया...!!
बच्चा आया
तो जहाज बना लिया...!!
शहर आया
तो रिवाज बना लिया...!!
~खामोशियाँ©
शनिवार, 16 मार्च 2013
पुरानी खिड़कियाँ...!!
उचक के झांक रहे...
पुराने यादों के अक्स...!!
पर्दो पे पेंग मारते...
पतझड़ के गमगीन भौरे..!!
कितने अरमान अपने पर
लादे उतार उन्हे ज़रा...!!
कुछ चौड़े लंबे ठहरे...
गर्दन झुकाये घुस रहे...!!
अब बुला रहा तेरी
कोहनी छूने को बर्जा...!!
थोड़ा बेताब हैं वो...
रील घूमा के चलाने को...!!
देखेगा वो भी साथ बैठे...
रोने मत देना उसे...!!
वरना लोग सोचेंगे...
गर्मियों मे अबसार कैसे...!!
~खामोशियाँ©
शुक्रवार, 15 मार्च 2013
बुधवार, 13 मार्च 2013
ख्वाब...!!!
ख्वाब परिंदा ठहरा...
बड़ी आराम से...!!!
उड़ रहा ख्वाइशों के
नीले बैक्ग्राउण्ड मे...!!!
अचानक टकरा गया...
टूट गए पर उसके...!!!
छन्न से बिखर गयी...
मानो सारी कायनात...!!
ओह रूई के गोले...
रंगीन बनते जा रहे...!!!
सूरज पीला मरहम लिए
चाँद ढूढ़िया टॉर्च थामे...!!!
सभी आए हॉस्पिटल मे...
पर कमी हैं किसी की...!!!
मुकद्दर की गाड़ी पंचर हैं...
उसे कोई बुला लाओ...!!!
मंगलवार, 12 मार्च 2013
सोमवार, 11 मार्च 2013
रात...!!!
आज आसमान की ओर देख रहा था तो कुछ सोचा की बनाऊ तस्वीर... लेकिन रेखाओ से नहीं शब्दो से तस्वीर अटपटा लग रहा सुनने मे...!!
दूर खड़े सितारे पास बुला ले...
रात हो चली चिराग जला ले...!!!
एक उदास पुर्जा छू रहा दामन...
अंधेरा हैं घना अंदर सुला ले...!!!
झील नहाने गई बड़ी दूर लगता...
रूठी हुई चाँदनी तू मना ले...!!!
आसमान बड़ा रो रहा इनके बगैर...
वो काला कोट भी यही बिछा ले...!!
शनिवार, 9 मार्च 2013
शुक्रवार, 8 मार्च 2013
हाइकू
हाइकू क्या है ?दूरी ही बेहतर मंझो बीच...
हाइकू यूं तो जापानी काव्य बिधा है ,किन्तु हिन्दी साहित्य ने भी इसे अपना लिया है ,हाइकू काव्य मे 17 वर्ण होते हैं ,और ये तीन पंकितियों मे लिखा जाता है ,प्रथम पंक्ति मे 5 वर्ण दूसरी पंक्ति मे 7 वर्ण और तीसरी पंक्ति मे पुनः 5 वर्ण ...!!
चड़ गए गर एक के ऊपर दूसरे...
फिर काटेंगे खाएँगे कई उगलियाँ...!!!
बुधवार, 6 मार्च 2013
काढ़े रुमाल...
कितनों की खिदमत का ख्याल कर रखे हैं...
हम अपनी दराज मे काढ़े रूमाल रख रखे हैं...!!
सदियों से जमती जा रही टोटियों जैसे...
अपनी हाथो से खुद जीना मुहाल कर रखे हैं...!!
रात के आते निकाल जाते स्वान बाहर...
घर के रखवाले ही अब बवाल कर रखे हैं...!!!
सोती चाँदनी को जगाने खातिर देख...
झिंगुर भी अपनी आवाज़े निहाल कर रखे हैं...!!!
शनिवार, 2 मार्च 2013
ख्वाइश...
धूप के साये मे निशान कहाँ आते...
टूटी शाख पे अब इंसान कहाँ आते...॥
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
ख्वाब अधूरे ना छूटते बशर के...
रातों को जगाने अब हैवान कहाँ आते...॥
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुबान छिल जाती गज़लों की महफ़िलों मे...
जुम्मे की दुपहरी पे अब अजान कहाँ आते...॥
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
दुवाओ के थूकदान सजाते दरवाजे पर...
इस सुनसान मे अब मेहमान कहाँ आते...॥
ख्वाइशों की कतार लगाए खड़े हम...
मीरा के शहर मे अब घनश्याम कहाँ आते...॥
शुक्रवार, 1 मार्च 2013
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