बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 7 मई 2015

याद


बनके याद तुझसे अपने ख्वाबों में मिलता रहूँ,
चाँद को बनाकर आईना मैं हर रोज सजता रहूँ।

अजीब सुकून दे जाती तेरी तबस्सुम संदली सी,
लेकर तेरी ये मोहोब्बत मैं हर रोज़ महकता रहूँ।

लकीरें उलझी सी है उसका ज़िक्र तक ना करना,
कब तलक नजूमी से मैं हर रोज झगड़ता रहूँ ।

- मिश्रा राहुल

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