बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 10 मई 2015

तस्वीरें


यादें रूह को अंदर से इतना खोखला बना देती,
खुद ही तस्वीरों से निकलकर रास्ता बना देती।

इंसान गायब हो जाता इस अचानक दामन से,
कीमती होकर जिंदगी इतना सस्ता बना देती।

एहसास इतना पलता रहता उन पुराने खतों में,
जवाब कितने रोज लिखकर वास्ता बना देती।

चुपके से माफी मांग रहे खुले गुलाबी लिफाफे,
हल्की सी होकर भी यादों का बस्ता बना देती।
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©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल | १०-मई-२०१५

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