जलती राखों पर खाली पाँव ही चलते है,
कोयले के खदानों में सूरमा ही पलते है।
हौसलों की चिंगारी जलाई ऐसी उम्मीद,
हाथो में लेकर सूरज आँखों में मलते है।
चाँद पूरा हो या आधा फर्क नहीं पड़ता,
अकेली शब में जुगनू जेबों मे रखते हैं।
दिखाओ तो दो बस कहाँ है मजिल मेरी,
पाने की ख्वाइशें तो जन्नत की करते है।
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हौसला | खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल
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