बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 22 मई 2015

मुझमें समा ना



छोड़
ना दलीलें
दुनियादारी की।

तू
अपना हक
जाता ना,

तू
फिर से
मुझमें समा ना।

दो बातें
पुरानी करनी।
दो रातें
साथ जगनी।

कुछ
खिस्से फिर
बतला ना।

तू
फिर से
मुझमें समा ना।

दुनिया
परायी सी
लगती है।

तन्हा
सतायी सी
लगती है।

तू
बातों का
जादू चला ना।

तू
फिर से
मुझमें समा ना।

रोज
खोजता हूँ
वो अक्स तेरा।

कितना
प्यारा सा
खिलखिलाता चेहरा

तू
खुल के
सब बता ना।

तू
फिर से
मुझमें समा ना।

©खामोशियाँ-२०१५ | मिश्रा राहुल | २२-०५-२०१५

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