बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 14 मई 2015

वो आखिरी मुलाक़ात - लघु कथा



"Meet Me at Gol Park...Important बात करनी" Suhani Text Recieved

बड़ी देर तक दोनों में कुछ भी बातें ना हुई। आखिरकार समर्थ नें हंसकर अपनी कोशिश करने के हाथ बालों को सहलाने लाया।

हाथ झटकते हुए सुहानी नें कहा, "थोड़ा हद में रहो। I am not your assets..Got it...Mr. Samarth..."

समर्थ नें बड़ा अचंभित होकर सुहानी को एक टक देखने लगा। फिर अपना हाथ हौले से हटाकर अपने चेहरे को ढाँप लिया। कुछ देर तक सोचा असल में पिछले पाँच साल में ये पहली बार था जो सुहानी नें इतना rudely बात किया था। समर्थ के हाथ जाने कितने यादों की खून से सने, भीगे हुए मालूम पड़ रहे थे। उसको समझ नहीं आ रहा था कल तक तो सब ठीक था आज अचानक इतनी दिक्कत कहाँ से हो गयी।

"और ये इमोश्नल ड्रामा बंद करो। मेरा दिमाग खराब हो जाता। पागलपन अपने पॉकेट में रखा करो।" सुहानी नें गुस्से में कहा

पर समर्थ के आँसू कहाँ रुकने वाले थे। शायद इतना मजबूत लाइफ़स्टाइल का समर्थ खुद के यादों के आगे असमर्थ कैसे हो जाता।

"मैं रो नहीं रहा हूँ बोलो कौन सी बात करनी" समर्थ नें आवाज़ में जोर लगते बोला
"हाँ तो सुनो। तुम्हारे साथ रहकर मेरी ज़िंदगी कैद हो गयी है। हर चीज का हिसाब देना पड़ता। कहाँ जाती हूँ क्या करती हूँ सब कुछ। ये सब से मैं अब पक चुकी हूँ। सो तुम मेरे बगैर जीना शुरू कर दो। ना तुम्हें दिक्कत ना मुझे दिक्कत।" सुहानी से दो टूक सा जवाब उसके मुंह पर दे मारा

"अरे ऐसा कहाँ है। कौन किसकी आजादी छीन रहा। मैं तो तुम्हारा खयाल रखने की वजह से ऐसा कहता रहता हूँ। रूहानी प्लीज इतना rude ना हो हम अच्छा नहीं लग रहा। जो वजह है वो बताओ ना मेरा दिल नहीं मान रहा।" समर्थ नें हबसते हुए कहा

Care My Foot...तुम सब care का हवाला देकर हम लड़कियों की आजादी पर डाँका डालते हो। और इस मुलाक़ात को आखिरी समझना दुबारा मेरे से कांटैक्ट करने की कोशिश भी मत करना। मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहती।

I Hate You ... I Hate You .... I Hate You

सुहानी...सुहानी...एक बात मेरी भी सुन लो ... चिल्लाता हुआ समर्थ उसके पीछे भागा पर सुहानी नें अपना बैग उठाया और बिना पीछे एक बार भी मुड़े सीधा चलती गयी। उसके कदम तेज और तेज चलते जा रहे थे। मानो वो किसी दायरे से बाहर भागने की कोशिश में हो।

समर्थ बैठ गया। उसको कुछ बातें समझ नहीं आ रही थी। उसको सारी बातें एक साथ रील दर रील घूमने लगी। शायद ये वही पार्क था जहां से उसकी नई ज़िंदगी नें करवट ली थी। उसको जीना पहाड़ लगने लगा था। अचानक से सुहानी का व्यवहार उसको पच ही नहीं रहा था। क्यूंकी पाँच साल इतना कम समय न होता की कोई एक दूसरे को जान-पहचान ना पाए। फिर भी जो हो रहा था उसपर वो विश्वास कैसे ना करे। अजीब सा असमंजस में समर्थ कभी अपना हाथ दीवाल पर मार रहा था तो कभी पाँव जमीन पर पटक रहा था।

दुश्मनों से तो लड़ा जा सकता पर यादों से लड़ना आसान काम कहाँ।

पर ये mystery कहाँ ज्यादा देर टिकने वाली थी। समर्थ थोड़ा शांत हुआ तो देखा एक रंग-बिरंगा कार्ड उसके बगल में गिरा हुआ था।

सुहानी त्रिवेदी वेड्स अभिलेख शुक्ला। बस बाकी माजरा समर्थ के आगे आईने के समान साफ था। सुहानी का बदलाव इसीलिए था कि वो मेरे दिल में नफरत भर सके। वो धीरे धीरे पार्क से निकलने लगा। तो देखा सुहानी वही बैठी रोए जा रही है।

सुहानी नें समर्थ को नहीं देखा। समर्थ नें जल्दी से कार्ड अपने शर्ट में डाल दिया।

सुहानी....एक बार सुनो तो मेरी बात सुन लो....समर्थ नें फिर आवाज़ लगाई।

समर्थ की आवाज़ सुनकर सुहानी अपने आँसू पोछते हुए झट से पीछे घूमी और बोली...."गधे... नालायक...तुम्हारे भेजे में कोई बात आसानी से आती है की नहीं। मैं तुमसे प्यार नहीं करती। नहीं करती नहीं करती।"

"तो किससे करती हो प्यार अभिलेख शुक्ला से", समर्थ नें कार्ड दिखाते हुए बोला।

अब सुहानी को रोकना नामुमकिन था। उसके आँसू अब समर्थ के आगे ही बिखर पड़े। सुहानी लिपट गयी समर्थ से। बस दोनों के आँसू नें ही जाने कितने सवालों के जवाब खुद ब खुद दे दिये।

I will love you forever....जहां से कहानी शुरू हुई थी आज शायद वही पर आकर थम गयी....थम जाना कहना थोड़ा गलत होगा।

प्यार थमता नहीं। रुकता नहीं चलता जाता है। बस वो मुलाकात जरूर आखिरी थी।
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वो आखिरी मुलाक़ात - लघु कथा
©खामोशियाँ - २०१५ | मिश्रा राहुल

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