बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 31 मई 2014

गलियों


गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!

हम दौड़-दौड़कर जहां से
पार्ले-जी लेकर आते थे,
जब सचिन-दादा बनकर,
आसमानी छकके लगाते थे...!!!
पाँच रूपये का मैच खेलकर,
सबके मन को भाते थे....!!!

गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!

चूरन-पुड़िया-कोला-गुड़िया,
आजभी लाती पागल बुढ़िया,
पर समय नहीं खेले-पुचकारे,
हँसकर उसको अम्मा पुकारे....!!

गिनती हाथो मे भाती थी,
हंसी तीन पैसो की आती थी,
तीन पैसे भी खर्च ना होते...
अम्मा की चिमटी आती थी....!!

गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!

हमने भी हीरो होते थे,
चाचा-डोगा सब होते थे...
साबू सबको प्यारा था,
ध्रुव सबका राज-दुलारा था....!!!

जब एक ही टीवी होती थी,
उसमे भी सीता रोती थी,
पूरे गाँव मे आँसू छाता था...
रावण दिल दुखलाता था...!!

गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!

©खामोशियाँ-२०१४ 

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