गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!
हम दौड़-दौड़कर जहां से
पार्ले-जी लेकर आते थे,
जब सचिन-दादा बनकर,
आसमानी छकके लगाते थे...!!!
पाँच रूपये का मैच खेलकर,
सबके मन को भाते थे....!!!
गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!
चूरन-पुड़िया-कोला-गुड़िया,
आजभी लाती पागल बुढ़िया,
पर समय नहीं खेले-पुचकारे,
हँसकर उसको अम्मा पुकारे....!!
गिनती हाथो मे भाती थी,
हंसी तीन पैसो की आती थी,
तीन पैसे भी खर्च ना होते...
अम्मा की चिमटी आती थी....!!
गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!
हमने भी हीरो होते थे,
चाचा-डोगा सब होते थे...
साबू सबको प्यारा था,
ध्रुव सबका राज-दुलारा था....!!!
जब एक ही टीवी होती थी,
उसमे भी सीता रोती थी,
पूरे गाँव मे आँसू छाता था...
रावण दिल दुखलाता था...!!
गलियों को ध्यान से देखो तो,
कभी भूले से खुद को रोको तो....!!!
©खामोशियाँ-२०१४
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