बड़ा जिल्द चढ़ाता है।
किताबें खूब आती घर,
पढ़ने किसे आता है।
मझला होटल जाता है,
जूठे बर्तन खंगालता है।
व्यंजन बड़े अगल-बगल,
पेट कुछ कहाँ समाता है।
घर को लौट सब आते,
लकीरें वहीं छोड़ आता है।
किस्मत इतना दिखाता,
शाम साथ तो बिताता है ।
चित्र-साभार गूगल
©खामोशियाँ-२०१४
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें